दिवाली पर कुछ रुबाइयाँ…
दिवाली पर्व है आया कोई दीपक जलाओ तुम।
अँधेरे मिट चलें दिल से उजालो में तो आओ तुम।
बिना चाहत मुहब्बत के दिवाली हो नहीं सकती।
दिवाली रोज हो घर में ज़रा चाहत जगाओ तुम।।//1
ख़रीदो दीप मिट्टी के दुवाएँ चार मिल जाएँ।
तुम्हारे प्यार के बदले कई घर बार चल जाएँ।।
जला देशी अगर घी तो हवाएँ पाक पाओगे;
पटाखें फोड़कर सुनलो फ़िज़ाएँ ख़ाक़ हो जाएँ।।//2
ज्ञान शील हो मर्यादा भी, शक्ति भरो अंदाज़ों में।
प्रेम दया हो त्याग भावना, बसे नूर अल्फ़ाज़ों में।।
पर्व दिवाली का मने तभी, राम-ख़ुदा इक हो जाए;
सिर्फ़ मुहब्बत रहे हमेशा, मन दिल अदब तक़ाज़ों में।।//3
दिवाली पर्व ख़ुशियों का बुराई की सफ़ाई का।
निकाली धूल घर से ज्यों वक़्त बद दिल से विदाई का।।
मिठाई-सी मधुर वाणी हुई जो तब दिवाली है;
बनो अच्छे बनो सच्चे ये उत्सव हक़ अदाई का।।//4
आर. एस. ‘प्रीतम’