दिवस पंख के वो…
साम्राज्य बिछा इस पन्नों में किसकी
खोजूँ मगर मिला नहीं इसमें कहीं
इति वर्तमान या भावी में सही
पाया न दिखा जैसे हो छू उड़न
लूटी दास्तां यह भविष्य किसकी फंजी जा
ज़माना गया कहर भी सुने देखें हाहाकार
हाय हाय कर रहा हो रहा हाय हाय
जिस ओर उमड़ सैलाब है उस ओर नहीं कसर
कुछ ही कशिश शेष या अवशेष रहा
इस खंडहर में छिपा किसका रहस्य ?
भेद – भेद में मतभेद देखा अमिय या विषदूष
लकीर खींच या पट – पट दे खड़ा अट्टार
बून्द – बून्द के तान दे यह संग्रहण करें कौन ?
श्वेत कण में किंचित असित देखा, किस संहार
रक्तरंजित भव के जाने नहीं वो बहे लहूधार
शून्य में अशून्य के तत्व खोजूँ किस ओर चले सार
मैं नहीं अन्य – अन्य के कौन कहें दिवस काल
इस रण के श्वर भरा, है नहीं वो लय गति चाल
दर्प हनन नहीं कहीं जिस ओर दूर्दिन उत्पीड़न
सह्य असह्य के बीती काल अब प्रचंड उच्च हुँकार
पर पर के दिवस पंख के वो उड़ान नहीं उस खग के
थी वज्र प्रहार प्रचंड प्रलय के वो भी दर्प भरा है हिल्लोल
दें सौगात पर थी मृदूनि कुसुमादपि – सी पर दे कहाँ ?
यह है वज्रादपि कठोराणि रुखसत लूँ या दे समर्पण