दिल को सादर करो
प्रीतिमय व्योम बन दिल को सादर करो|
वह सहम जाएगा, ना अनादर करो |
उर सुलह जीत औ नेह-आधार है |
वह जवानी-सुआकर्ष की धार है |
हिय नहीं तो जगत भी निराधार है|
भाव गह किंतु मैली, ना चादर करो|
प्रीतिमय व्योम बन दिल को सादर करो|
वह सहम जाएगा, ना अनादर करो|
उर दुखाना कथानक पुराना हुआ|
अब मिलन का सुसाधन जमाना हुआ|
जग-भँवर में न फँसना जगत क्षार है|
आत्म-धन को धरम-गुरु -सा बादर करो|
प्रीतमय व्योम बन दिल को सादर करो |
वह सहम जाएगा, ना अनादर करो |
दिव्य अंतःकरण शुभ-अमिट प्यार है |
संस्कृति की सुआभा का त्योहार है |
चित्-सु आनंदरूपी सुखाधार है|
दीप्ति पहिचानों व इसका आदर करो|
प्रीतिमय व्योम बन दिल को सादर करो |
वह सहम जाएगा, ना अनादर करो |
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता
चित्=आत्मा