दिल
दिल उसको ढूँढता कहाँ है
शीशे सा दीखता कहाँ है
घाव हुए है जो दिल मेरे
आज उसे पौंछता कहाँ है
दर्द देकर जब तू चला गया
जेहन अब झेलता कहाँ है
रोज ख्याव मेहबूब के देखे
पर उसको भी ताँकता कहाँ है
दिलवर के लिए न अब कोई
अपने को मारता कहाँ है