दिल
अजीब दास्ताँ है
दिल तेरी
जब तक
धडकता रहे
तब तक
अह्सास
जिन्दगी का
बंद धडकनें
अंत इन्सान का
आंखे हुई चार तो
बेकाबू हुआ दिल
प्यार हुआ क़ुबूल तो
बहक गया दिल
वरना टूटा ऐसा कि
दुनियां हुई बेरानी
माँ के दिल की
ममता की
नहीं कोई सीमा
समुन्दर से भी
विशाल है
उसका दिल
दिल तेरी और
क्या कहूँ दास्ताँ
अपने अपनों के
करीब हो तो
सुखद अहसास
दिलाता है
ये दिल
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल