दिल समझता नहीं दिल की बातें, – डी. के. निवातिया
दिल समझता नहीं दिल की बातें,
बड़ा नादाँ है चाहता है मुलाकते !
बैचैनी के आलम में जीता रहता है,
काटे से कटती नहीं है अब रातें !
गुम रहता है तेरे ख्वाबो ख्यालो में,
न जाने कैसे है तुझसे ये रिश्ते नाते !
आँखों में बसे है कुछ अमोल लम्हे,
चाहकर भी भूले नहीं भुलाये जाते !
मन ही मन घुटते रहे एक आरसे से,
काश दिल की बात तुमसे कह पाते !
देते अगर वक्त कितना अच्छा होता,
तुम्हारी सुनते कुछ अपनी भी सुनाते
‘धर्म’ को इन्तजार है आज भी तुम्हारा,
अच्छा होता अगर दो घडी मिल जाते !!
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डी. के. निवातिया