दिल में उमड़े हैं उल्फ़त के जज़्बात फिर
दिल में उमड़े हैं उल्फ़त के जज़्बात फिर
आज आँखों से होती है बरसात फिर
रात भर एक दूजे की बाहों में थे
दिल को तड़पा रही आज वो रात फिर
डर था जिसका मुझे वो ही धमकी मिली
कह गया मुझसे क़ातिल वही बात फिर
आदमी की वफ़ा की मुहब्बत की क्या
देख ली उसकी नज़रों में औक़ात फिर
ज़िन्दगी ने दिये हंस के यूँ रंजोग़म
मिल गई मुझको जैसे है सौग़ात फिर
आज फिर कुछ निवाले नहीं मिल सके
मुफ़लिसी के वही आज हालात फिर
वो लुटा सा पिटा सा खड़ा सामने
उसकी आँखों में देखे सवालात फिर
हर जगह आज पहुंची है शहरी हवा
अब कहीं न मिलेंगे वो देहात फिर
फिर किसी रोज़ यूँ ही सफ़र में कभी
तुझसे ‘आनन्द’ होगी मुलाकात फिर
स्वरचित
डॉ आनन्द किशोर