दिल बेचारा
रोज निकलता हूं घर से दिल को जोड़कर
रोज पहुंचता हूं घर पे दिल को तोड़कर।
जब रोज़ टूट ही जाना है आखिर इस दिल को
तो कोई क्यों ना निकले घर पर ही इसको छोड़कर।
फ़िर देखना ज़िन्दगी कितनी ख़ूबसूरत हो जाती है
तुम टूटे हुए रिश्तों को देखो तो जोड़कर।