हिंद मैला ढो रहा है, नशा की जम्हाई है/कह रही हैं नशा कर लो दूर होंगीं व्याधियाँ/ स्वयं निज की पीर भूले, नशा- हिंदुस्तान बन
जनम भू पर आज क्यों, तम-अमावस्या छाई है|
हिंद मैला ढो रहा है, नशा की जम्हाई है ||
आदमी नंगा खड़ा या अशिक्षा की आँधिंयाँ |
कह रहीं हैं, नशा कर लो, दूर होंगीं व्याधिंयाँ||
रो रहा तनमय भवन ,अपमान सह अभिमान बन|
स्वयं निज की पीर भूले, नशा-हिंदुस्तान बन||
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता
06-04-2017