#रुबाइयाँ
व्यर्थ कोशिशें करते हो सब , हमको तुम रीझाने की।
चाह नहीं है अभी हमारी , दिल से दिल टकराने की।।
सीधे-सादे बंदे हैं हम , इश्के-आलम क्या समझें;
काम बहुत हैं अभी अधूरे , रज़ा उन्हें कर पाने की।।
लाख हसीं हैं इस दुनिया में , पर नहीं तुम्हारे जैसा।
दिले-गवाही तुम्हे पुकारे , क्या करे हमारे जैसा।।
दिल की सभी गुलामी करते , अलग तरीका चाहे हो;
दौड़ लहर-सी आ जाओ तुम , मैं हुआ किनारे जैसा।।
एक म्यान में दो तलवारें , होती नहीं ठिकाने की।
बात ग़ज़ब है भुला न देना , बात गौर फरमाने की।।
आग और जल का मिलना कब , दोनों को जीने देता;
नहीं इज़ाजत देता है दिल , मौत लिए अफ़साने की।।
दिल चाहे वही काम करना , हर दौर सुहाना होगा।
दिल के कहने पर लगा हुआ , वो सफल निशाना होगा।।
एहतराम रखो सबसे तुम , संस्कारी कहलाओगे;
छंदों में लिखा हुआ हो जो , वो मधुर तराना होगा।।
#आर.एस.’प्रीतम’
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