दिल पंछी
आज दिल पंछी बन,फिर उड़ चला
हवा के समंदर में डूबकियां लगा
बसानी थी मंजिल उसे भी कही
ना था मगर अपने घर का पता
सरहद परिदों की होती नहीं
वनाया नहीं घोंसलों का पता
कास में भी परिंदा बन जाऊ
जाऊ जंहा जी चाहे
जी करे जंहा बस जाऊ
रचनाकार
रंजीत घोसी