#ग़ज़ल-31
वज़्न-221-221-212-212
दिल जीतने की जिसे कला आ गई
हर कामयाबी उसे भला आ गई/1
जीता जहां है हँसी खु़शी जो़श में
सोचा कभी ना कहीं बला आ गई/2
नफ़रत नहीं प्यार था नज़र में भरा
ये जोर सब पर तभी चला आ गई/3
जो थे गिले दूरियाँ सभी मिट गए
रुह प्यार के दीप फिर जला आ गई/4
ममता यशोदा सरिस ज़रा कीजिए
हरजन कहे देख माँ लला आ गई/5
प्रीतम सुनो आज कुछ नया हम करें
कोई न कहता फिरे ख़ला आ गई/6
-आर.एस.’प्रीतम’
ख़ला-शून्यता