दिल चाहता है अब वो लम्हें बुलाऐ जाऐं,
दिल चाहता है अब वो लम्हें बुलाऐ जाऐं,
वो गुज़रे हुये ज़माने फिर से बुलाऐ जाऐं।
जहाँ दूर तक बिखरे थे नज़ारे बहार के,
वो खुशनुमा एहसास करीब लाऐ जाऐं।
यारियाँ ही यारियाँ कोई रश्क ही नहीं था,
अज़ीज़ दोस्त फिर से पास बिठाऐ जाऐं।
गमज़दा दिल कभी होता है तो रो लेते हैं,
हँसने को बचपन के खिलौने मँगाऐ जाऐं।
दूर आ गया हूँ ‘वारिद’अपनी मिट्टी से मैं यहाँ,
वो बाग बगीचे अब इस जगह लगाऐ जाऐं।
© विवेक’वारिद’*