दिल को तमाम बातों का तह खाना बना दे
दिल को तमाम बातों का तह खाना बना दे
शिकवे गिले कर कर के तमाशा न बना दे
जिस शय से दिल दुःख जाए उसे भूलना अच्छा
यादें कहीं अपनो से वेगाना न बना दे
सदमे में हों जज़्बात फिर भी मुस्कुरा देना
आँसू है चुग़लख़ोर अफ़साना न बना दे
जल जल के उजाला तुझे करना ही पड़ेगा
मिटना कहीं शम्मा से परवाना न बना दे
ग़म के नशे में चूर चला जा रहा है जो
एक एक क़दम पे कोई मयख़ाना न बना दे
इतना ख़याल रखती है ये ज़िंदगी मेरा
कोई भी चीज़ गम से अनजाना न बना दे
जन्नत तो उसी शख़्स के आग़ोश में होगी
बाहों में जो अपनी तेरा सरहाना बना दे