दिल को क्या हो गया कुछ पता ही नहीं
ग़ज़ल
दिल को क्या हो गया कुछ पता ही नहीं।
ज़िंदगी में रहा कुछ मज़ा ही नहीं।।
पी के मदहोश होते थे हम भी कभी।
तेरी आंखों में अब वो नशा ही नहीं।।
ज़िंदगी ले के आई है उस मोड़ पर।
सूझता अब कोई रास्ता ही नहीं।।
घोलती थी फ़ज़ाओं ख़ुशबू तेरी।
बह रही आजकल वो हवा ही नहीं।।
प्यार की गुफ़्तगू में गुज़रते थे दिन।
तेरी बातों में अब वो मज़ा ही नहीं।।
कोई चारागरी तू “अनीस” अब न कर।
जब मेरे दर्द-ए-दिल की दवा ही नहीं।।
– अनीस शाह “अनीस”