दिल के दरिया में जो उतरता है .. शमशाद शाद की एक शानदार ग़ज़ल
डूबता है न वो उभरता है
दिल के दरिया में जो उतरता है
एक मेरे सिवा जहां में भला
कौन तुझसे निबाह करता है
आप ही आप हैं निगाहों में
दिल मेरा आप ही पे मरता है
कोई तो वजह है ज़रूर इसकी
बेसबब कौन आहें भरता है
वो कि जिसने भुला दिया तुझको
क्यों उसी को तू याद करता है
लोग मरते हैं मौत आने पर
कौन मरने के डर से मरता है
हुकमरानों से दुश्मनी कर के
कब ग़रीबों का पेट भरता है
मुझसे तन्हाई में ज़मीर मेरा
घंटों अक्सर कलाम करता है
याद आती है जब भी शाद उस की
दिल पे इक नक़्श सा उभरता है
शमशाद ‘शाद’ नागपुर
9767820085