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3 Sep 2024 · 1 min read

दिल की हसरत

दिल की बात, जुबान से निकल ना पाई,
जिसे मेरी होना था, वो मेरी हो ना पाई ।।

अब मेरे इन आँसुओं का मोल कितना है,
बे मौसम बिन बादल बरसात हुई जितना है ।।

फूल मेरे ही बाग में खिला मैं ही माली था उसका,
फिर भी वो मेरे सूने गले का हार बन ना पाई ।।

चाँद के साये में वक्त गुजारा था मैंने चाँदनी बनकर,
फिर भी वह मुझे अपना बस शागिर्द ही समझ पाई ।।

मेरी नजरों ने ही धोखा दिया है मुझको इतना ज्यादा,
जिन नजरों से देखा उसे वह उन्हें देख क्यों ना पाई ।।

गिले-शिकवे ता उम्र रहेंगे जिंदगी में मेरे खुद से,
दिल से आई आवाज जुबान से निकल क्यों ना पाई ।।

उसने मुस्कुराकर हर बार पीछे मुड़कर देखा मुझको,
शायद उसे भी आश थी पर वो हकीकत हो ना पाई ।।

मैं नाउम्मीद हूँ जीवन से वह भी शायद निराश होगी,
यही फलसफा था हमारी मोहब्बत का जिसे ना मैं समझ पाया ना वो समझ पाई ।।
prAstya…….(प्रशांत सोलंकी)

Language: Hindi
1 Like · 69 Views
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