दिल की लगी थी …
दिल की लगी थी न तो कोई दिल्लगी हुई
ना तो दुआ सलाम न तो पँयलगी हुई
जाने था कौन दिल में जिसने घर बना लिया
जाले में मकड़ियों को भी हैरानगी हुई
कांटा बड़ा उदास था फूलों के बीच में
इक उम्र गुजरी पर न कभी दोस्ती हुई
वैसे तो बड़ा शुष्क था मौसम हयात का
मिलकर के उससे रात मगर शबनमी हुई
उड़ना पड़ा हवाओं में मजबूरियों के साथ
फूलों से जुदा जब भी कोई पंखुड़ी हुई
बदनाम मुझको कर रहा था जो गली गली
मुझसे मिला तो बोला कि बेहद ख़ुशी हुई