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14 May 2024 · 1 min read

दिल की बात जबां पर लाऊँ कैसे?

मैं मर रहा हूँ भीतर, उसको‌ बताऊँ कैसे?
दिल की बात जुबां पर लाऊँ कैसे?

यूँ तो‌ आते हैं कई‌ सारे बहाने मुझको,
खोखली रुह मर रही है जो, जताऊँ कैसे?

चैन तो‌ यूँ भी न आता था पहले मुझको,
महफ़िल-ए-राज़ का आगाज़ था, समझाऊँ कैसे?

अब हंसी‌ पर भी हंसी‌ आती है मुझको,
तुम जैसों को हंसना सिखलाऊं कैसे?

यूँ तो पी जाऊँ कोलाहल सारा का सारा,
तुम लेकिन
फिर भी सुनना चाहोगे, पर बतलाऊं कैसे?

ग़ज़ल बह रही रग़-ओ-जहन में
छुपाना आता नहीं, छुपाऊँ कैसे?

मरा हुआ मन, ज़हनी अजईयत़।
बाद इसके, मैं नज़र आऊँ कैसे?

सोच पर लगे हैं ताले हज़ार।
सोच किसी को बताऊँ कैसे?

खुश रहना अब बेवफाई है।
जो वफ़ा करुँ, मर जाऊँ ऐसे!

– ‘कीर्ति’

Language: Hindi
34 Views
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