तिश्नगी
दिल की गिरह ना खुली तो
नासूर बन रह जाएगी ,
जज़्बातों को जज़्ब किये ज़िंन्दगी
मा’जूर बन रह जाएगी ,
अश्कों को छुपाते -छुपाते
ये दिल पत्थर ना हो जाए ,
मा’रिज़-ए- इज़हार की
ये तिश्नगी कायम ना रह जाए ।
दिल की गिरह ना खुली तो
नासूर बन रह जाएगी ,
जज़्बातों को जज़्ब किये ज़िंन्दगी
मा’जूर बन रह जाएगी ,
अश्कों को छुपाते -छुपाते
ये दिल पत्थर ना हो जाए ,
मा’रिज़-ए- इज़हार की
ये तिश्नगी कायम ना रह जाए ।