दिल की किताब
दिल की किताब
मत खोलो
जगह जगह से गल चुकी है
हाथ लगाते ही
टुकड़ा टुकड़ा फट जायेगी
जो कुछ इसपर लिखा है
उसे अंदर ही अंदर
गलने दो
लुगदी बन सड़ने दो
खुद की कहानी
खुद में ही
दिल के किसी
सहमे से कोने में कहीं
खत्म होकर दफन होने दो
अंधेरी गली से
थोड़ी सी दरार मिलने पर भी गर
बाहर निकली तो
एक लपलपाती आग की लपटों की चिंगारी बन
कई बस्तियों को राख कर जायेगी।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001