दिल की आवाज़
दिल में जो उठती है आवाज़ उसे क्यों नहीं सुनते ?
उभरते ए़हसास का आग़ाज़ जो है उसे क्यों नहीं म़हसूस करते ?
क्यों न किसी मज़लूम के बहते आंसुओं को पोंंछने के लिए
आम़ादा होते ?
क्यों न ज़रूरतमंदों की मदद में अपने हाथों को आगे बढ़ाते ?
क्यों ज़ुल्म चुपचाप न सहकर खिलाफ़त का जज़्बा
ब़ुलंद करते ?
क्यों नहीं खुदगर्ज़ी से ऊपर उठकर दिल में हम़दर्दी जगाते ?
क्यों न दूसरों के दाम़न के दाग़ों को उजागर करने से पहले अपने ग़िरेबान में झांक लेते ?
क्यों न हराम़ की दौल़त के बजाय मेहनत की कमाई पर
भरोसा करते ?
क्यों न दूसरों का बना काम बिगाड़ने की जगह
उसे बनाने में मदद करते ?
क्यों न अपने अंदर की हैव़ानियत के पीछे छिपी इंसानिय़त को
पहचान लेते ?
ख़ुदा की इब़ादत से पहले हर इंसानी ऱुह में ख़ुदा बसता है ये क्यों नहीं जान लेते ?