दिल का बोझ
पीठ पर बोझ उठा लेता हूं
अपने हाथों में भी उठा लेता हूं
बोझ जो ये दिल पर है मेरे
चलो अब किसी को बता देता हूं।।
थोड़ी देर तक ही रहता है
ये पीठ और हाथ में उठाया बोझ
थक जाओ तो कहीं भी रख
सकते है ये पीठ और हाथ का बोझ।।
लेकिन जो ये दिल का बोझ है
लगातार उठाना पड़ता है
थक जाते है जल्दी उठाकर इसे
फिर भी हमें उठाना पड़ता है।।
जो करो अपनों से साझा ये बोझ
तो निश्चित ही कम हो जाता है
जो सबसे कहोगे इसे तो वो हमें
हंसी का पात्र भी बना जाता है।।
धीरे धीरे इक्कठा होता है ये
पता नहीं कब बोझ बन जाता है
बोझ बन जाए एक बार तो
सोच को नकारात्मक बना जाता है।।
जमने न दो इस बोझ को दिल में
जब भी मौका मिले निकालते रहो
जब भी कोई बात चुभे तुम्हें, उसे
अपने दोस्तों से तुम बताते रहो।।
ना कहो किसी से ऐसी कोई बात
जो चुभे उसे और दिल में रह जाए
चुभ जाए तुम्हें भी,गुस्से में तुमसे
फिर वो कुछ ऐसी बात न कह जाए।।
रहेंगे अगर प्यार से सभी
किसी के दिल में न बोझ होगा
खुश रहेंगे मिलकर जब
किसी को न कोई रोग होगा।।