दिल का दर्द
दुआ अपने ही देते हैं दर्द अपने ही देते हैं
नहीं लिक्खा कहीं पर भी गैर ही चोट देते हैं
जहाँ होने लगे इज्ज़तनवाज़ी हद से ज्यादा तो
समझ लेना वही मिलकर गला भी घोंट देते हैं
कौन अपना पराया कौन समझना है बड़ा मुश्किल
जिन्हे दिल में बसाओगे वही दिल नोच लेते हैं
उन्हे हमसे गिला इतना कि हम उनसे नहीं मिलते
मगर वो जब भी मिलते हैं तो सांसे रोक लेते हैं
कहाँ तक मैं गिनाऊँ जो गिले शिकवे भरे दिल में
दर्द हद से गुज़रता जब तो आँसू रोक लेते हैं
बस इतनी सी कहानी है तुमारे दोस्त की सुन लो
अगर रहबर नहीं मिलता तो मंजिल रोक लेते हैं
अशोक मिश्र