दिल का कातिल है
ग़ज़ल
दिल का कातिल है
सजी है खूब स्वरों की जो आज महफ़िल है।
इसी में है कहीं वो चोर दिल का कातिल है।।
नज़र जो चार हुईं है गुनाह बेशक तो।
किसी भी तौर से वो भी तो इसमें शामिल है।।
हमारा रिश्ता इसी बात से समझ लेना।
लगी है पिक उसी की औ मेरी प्रोफ़ाइल है।।
सुनो सजन नहीं रुखसार पर नज़र डालो।
बिठाया हुश्न पे दरबान ये नहीं तिल है।।
कँटीली राह कठिन था बहुत सफर मेरा ।
तुम्हारे साथ चले तो मिली ये मंज़िल है।।
उजाला कर रही हूँ जग रहे सदा रौशन।
कि जल रहा है दिया और ज्योति का दिल है।।
✍?श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव
साईंखेड़ा