#ग़ज़ल-29
खोये-खोये रहते हो कैसी डगर है
लगता है हमको मोहब्बत का असर है/1
तू मिलके हमसे खिलके हँस भी लिया कर
दिल कहता है तू मेरा रसके-क़मर है/2
दिल का ये अफ़साना तो मिटता नहीं है
गुल मुर्झाए तो क्या ख़ुशबू तो अमर है/3
खुद से बातें करना पागलपन लगे है
चाहे कहलो दिल से दिल का ये समर है/4
मौसम की पहली बारिश में तन भिगोकर
कहना ना मुझको तुम ये सपना मगर है/4
भूले से ना भूले जाएँ हैं कभी वो
जिन रिश्ते-नातों से जुड़ जाता जिग़र है/5
हर घर को यारो तुम देखो इस तरह से
मिल इनसे रोशन होता अपना नगर है/6
सच में मंज़िल होती है आसान उसकी
हँसके चलता जो भी जीवन का सफ़र है/7
खिलता जैसा फूलों-सा मन प्यार में ये
वैसा मैंने देखा ना खिलता किधर है/8
“प्रीतम”तुझको पाकर सब कुछ पा लिया है
तेरी नज़रों में देखी सबकी नज़र है/9
-आर.एस.’प्रीतम’
रसके-क़मर-“चाँद से भी ख़ूबसूरत महबूबा”
क़मर-“चाँद”
रसके-“सौंदर्य-पूर्ण”