दिल और धड़कन
आज दिल की ‘प्रबल’तरंगे
उठ रही तूफान सी,
आज उन रिश्तों के ऊपर
हरकते अनजान सी
दिल की धड़कन भी पिरोती
गुत्थियां श्मशान सी
आज दिल की ”प्रबल’ तरंगे
उठ रही तूफ़ान सी
काश! अपने बस मे होता
दिल को यूँ ही बाट देना,
करके इसके पांच टुकड़े
सुर-सागरो मे बाट देना,
‘एक अर्पित उस नदी को
जो सींचती है लोरियों में ,
एक टुकड़ा उस बहन को
जिनका प्रेम धागा डोरियों में,
काश!अपने बस में होता………
काश!अपने बस में होता
दिल को यूँ ही बाट देना
हिस्सा में एक उस प्रिये को
जो छोड़ सबकुछ पास आयी,
हिस्सा में एक उस पिता का
जिनसे है, पहचान पायी,
हिस्से में एक प्रिय अनुज का
हरकते पवमान सी,
आज दिल की ‘प्रबल’ तरंगे
उठ रही तूफ़ान सी
दिल ना देकर दोस्तों को
‘धड़कने’ है नाम की,
धड़कने चलती है, जब तक
है, जिंदगी पहचान की,
नाम लेती उन पागलो का
धक् धक् है पहचान सी
आज दिल की ‘प्रबल’ तरंगे
उठ रही तूफान सी