दिल।में जगह बनना चाहता हु
में अपने किसी परिवार की ख़ुशी बनना चाहता हु
जो।मुझे अपना ले ,में स्नेह का बंधन बनना चाहता हु ।
चटपटी लड़ाई को अपने प्रेम रस के रूह में भरना चाहता हु
मेरा परिवार ही छोटा ,,,
तीन सदस्य का आचंल का ही लौटा ।
इस दुनिया में बेमतलब बातो की जंजीर तोड़कर अपने लौटे से प्यास बुझाना चाहता हु ।
में स्वर्थीपन के अँधियारो में हर दिल दर्द में उजाला बनना चाहता हु ।
रुआंसी आवाज।में किसको सुनाऊ वो रूठ कर चलाया गया उसे फिर से मनाना चाहता हु ।
किए उसके अहसानो का भार उतारकर ,में आभार प्रकट करना चाहता हु ।
काम हो तो दुआ में याद कर।लेना में हर पल तुम्हारे आदेश।में तैयार् रहना चाहता हु ।
इस ज्ञान की ज्योति की प्रकाशमय पुंज में, जी के ग्रुप में
सरस्वती।माँ का वंदन करना चाहता हू
प्रवीण शर्मा ताल
जिला रतलाम