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27 Jan 2021 · 1 min read

दिल्ली बड़ी दूर है, किसान भाई! #ज़हन

वह भागने की कोशिश करे कबसे,
कभी ज़माने से तो कभी खुद से…
कोई उसे अकेला नहीं छोड़ता,
रोज़ वह मन को गिरवी रख…अपना तन तोड़ता।

उसे अपने हक़ पर बड़ा शक,
जिसे कुचलने को रचते ‘बड़े’ लोग कई नाटक!
दुनिया की धूल में उसका तन थका,
वह रोना कबका भूल चुका।

सीमा से बाहर वाली दुनिया से अनजान,
कब पक कर तैयार होगा रे तेरा धान?
उम्मीदों के सहारे सच्चाई से मत हट,
देखो तो…इंसानी शरीर का रोबोट भी करने लगा खट-पट!

अब तुझे भीड़ मिली या तू भीड़ को मिल गया,
देख तेरा एक चेहरा कितने चेहरों पर सिल गया।
यह आएगा…वह जाएगा,
तेरे खून से समाज सींचा गया है…आगे क्या बदल जाएगा?

तेरे ज़मीन के टुकड़े ने टेलीग्राम भेजा है,
इस साल अच्छी फसल का अंदेशा है।
देख जलते शहर में लगे पोस्टर कई,
खुश हो जा…इनमें तेरी पहचान कहीं घुल गई।
=========

Language: Hindi
1 Comment · 260 Views
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