दिल्ली की बिल्ली
धा–धा धिन–धिन, धा–धा धिन–धिन
धा–धा धिन–धिन, लल्ला–लल्ला
दिल्ली की जो इक है बिल्ली
पूना का एक जो है बिल्ला
यारों आओ कथा सुनाऊँ
मत करना तुम हल्ला–गुल्ला
बिल्ली रानी बड़ी बवाली
है मिजाज़ से लाख सवाली
दिल की है वो एकदम काली
बिल्ले की रंगत नेपाली
म्याऊँ–म्याऊँ बोली जो बिल्ली
बिल्ला पहुँचा झटपट दिल्ली
कामनाओं की उमड़ी आँधी
बिल्ले को एक घड़ी जो बाँधी
ठीक समय का वादा करके
अगले दिन वो निकले घर से
साथ लिया एक बागड़बिल्ला
बना उसे अपना जो पुछल्ला
बिल्ली रानी बड़ी सयानी
घाट–घाट का पिए है पानी
बातें उसकी हैं बेमानी
गढ़ती निश दिन नई कहानी
चलते–चलते वन वो पहुँचे
सहवासों के घन वो पहुँचे
वासनाओं के भोग–कुलाँचें
फूले–नथुने नथ को जाँचें
नैनों से वो नैन लड़ाते
एकदूजे में वो खो जाते
बिल्ली तन को झुमा जो गाती
बिल्ले में मस्ती भर जाती
आँचल अपना जो वो उड़ाती
बिल्ले के मन को लहराती
भर हाथों से जाम बढ़ाती
सिगरेट को छल्लों में उड़ाती
बागड़बिल्ला जो है पुछल्ला
मंडी का है इक वो दल्ला
मदिरा–रूपी घूस वो लेकर
पहरा दे–दे करता हल्ला
मिलकर नाचें धिन्ना–धिन्ना
बिल्ली बोले मुन्ना–मुन्ना
कभी जो दिल्ली कभी जो पूना
खेला करते टुन्ना–टुन्ना
पहाड़ पे जा बैठा जो बिल्ला
बिल्ली करती चिल्लम–चिल्ला
वृंदावन में बँधी थी घण्टी
हरिद्वार में बजा था घण्टा
कहत कुँवर फिर मचा जो हल्ला
जान गया फिर सारा मोहल्ला
धा–धा धिन–धिन, धा–धा धिन–धिन
धा–धा धिन–धिन, लल्ला–लल्ला
–कुँवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह
*यह मेरी स्वरचित रचना है
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