दिलों की पीर नयन को सजल ही लिख दो ।
लिखो तो गीत कोई एक ग़ज़ल ही लिख दो,
दिलों की पीर नयन को सजल ही लिख दो ।
ग़रीबों के वो सितारे चमकते झोपड़ियों में,
तरसते नींद को ऊँचे महल ही लिख दो ।
जवां दिलों की धड़कने अँधेरे क़मरों में,
किसी के पाँव-आहटें टहल ही लिख दो ।
जो कर सके न मुहब्बत कभी ज़माने में,
नाक़ामयाबी की इक पहल ही लिख दो ।
तुम्हारे दर्द में ‘अंजान’ की तड़प या फिर,
हक़ीकतों की असल या नक़ल ही लिख दो ।
दीपक चौबे ‘अंजान’