दिये को रोशननाने में रात लग गई
दिये को रोशननाने में रात लग गई
अंधेरों को हटाने में बारात लग गई
मैं टूटे हुए ख्वाब पूरे करके खुश हूँ
उसी को बनाने में जिंदगी लग गई १
ले गए जिसको उजाले की भीड़ मे
उसी सफ मे उसकी आँख लग गई
वो किसी और पांव का घुंघरू बना
कोई और ओढ़नी मेरे हाथ लग गई २
वह रात रोशन बना ली गई
जिसमें कई बरसात लग गई
दो दिलों को न एक होने दिया
और पीछे हमारे जात लग गई ३
इज़हार ए इश्क ना कर पाया वो
उसकी डायरी मेरे हाथ लग गई
बातों के जख्म ना भरेंगे कभी
ऐसी दिल पर कोई बात लग गई ४
मोहब्बत को न ठुकराइए कभी
गैरों को गले ना लगाइए कभी
रास्ते में छोड़कर चले गए तुम
हमारे दिल पर ऐसी घात लग गई ५
✍️कवि दीपक सरल