दिया जलेगा कभी हमारा।
ग़ज़ल
काफिया- आ
रदीफ़- कभी हमारा
121….22…..121….22
दिया जलेगा कभी हमारा।
मिटे अँधेरा कभी हमारा।
जिसे तू कहता है चाँद मेरा,
वही तो होगा कभी हमारा।
समय किसी का नहीं हुआ है,
कभी तुम्हारा कभी हमारा।
जो बेवफा हो गया अभी है,
वो बावफ़ा था कभी हमारा।
निगाहें जिस पर सभी की प्रेमी,
वो ही था प्यारा कभी हमारा।
…….✍️ सत्य कुमार प्रेमी