दियासलाई और मानव
दियासलाई और मानव
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माचिस की डिबिया में
बंद दियासलाइयों सा है
मानव चरित्रों का कर्म
जैसे एक ही डिब्बी में
बंद वो दियासलाइयां
एक एक कर के
क्रियाशील हो कर जहाँ जहाँ
क्रियान्वित हो कर
क्रिया करती हैं तो
कुछ दीपक जलाती हैं
कुछ मोमबत्तियों जलाती हैं
कुछ बूझे चुल्हे जगाती हैं
कुछ रोशनियाँ फैलाती हैं
कुछ झोंपड़ियां जलाती हैं
कुछ चिराग जलाती हैं
कुछ सिगरेट,सिराग जलाती हैं
कुछ धूप-अगरबत्तियां जलाती हैं
कुछ मन्दिरों में ज्योति जलाती हैं
कुछ सर्दियाँ भगाती हैं
कुछ ज्वाला भड़काती हैं
कुछ गर्मियाँ बढ़ातीं हैं
लेकिन जब कभी भी
ये सारी एक साथ जल जाएं
तो सर्वस्व जलाती हैं
जंगल के जंगल जलाती हैं
वैसे ही मानवीय चरित्र
स्वार्थ की अग्नि में
समाज,संस्कृति,संस्कार,समुदाय
देश-प्रदेश, संसार जलाती हैं
जाति,धर्म के आधार पर जलकर तो
मानवीय मूल्य और मानवता
आधार और स्तम्भ जलाती है
लेकिन जब कभी हित में जले
तो सुखविंद्र नूतन,जागृति की
नव ज्योति जलाती हैं
नव ज्योति जलाती है
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)