दिन रात याद सताज
*****दिन रात याद सताए******
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कोई यहाँ आए जरा मुझे ये बताए
दिन रात क्यों ये तेरी याद है सताए
दिन में आँखों में आँसू ये बन जाएं
रातों को उठ उठ सोतों को जगाए
नूतन और पुरातन भंवर छोड़ जाए
शान्त बैठे दिल को झकझोर जाए
तन भूल जाए पर मन ना भूल पाए
यादों का झरोखा झौंका बन आए
दिल दरिया सी यादों की गहराई है
दरिया गहराई में ये यादें धंस जाए
दिल का प्रिय जब कोई छोड़ जाए
यादों के सहारे जिन्दगी बीत जाए
बार बार घात से है शिला टुट जाए
दिल क्या चीज है जान चली जाए
जब तक सांस चले याद नहीं जाए
दिन रात वियोग में बहुत तड़फाए
सुखविंद्र तुम बिन जिंदा न रह पाए
तुम नहीं तो तेरी याद में बीत जाए
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)