दास्तान ए दिल की धड़कन
दिल है तो धड़कने का बहाना भी ढुढेगा ,
अपना इश्क ए अफसाना कहीं तो ढूंढेगा ।
ज़माने से तो उम्मीद करना ही बेकार है ,
पत्थरों के शहर में धड़कन वो कैसे ढूढेगा।
इश्क कैसे करे ऐशो इशरत की चीज़ों से ,
वो तो है फानी उसमें धड़कन कैसे ढूढेगा।
इश्क करेगा वो अगर किताबों से जाहिर है,
उसमें भी वो अमल ओ इल्म ही ढूंढेगा ।
कुदरत इशारों में ही सही मुहोबत जता सकेगी ,
इस कुदरत में ही अमूमन खुदा को ही ढूंढेगा।
इश्क करना चाहे अगर वो बेजुबान जानवरो से ,
तो उसमें भी यकीनन वो खुदा को ही ढूंढेगा।
अगर इश्क करना ही है तो क्यों न करें खुदा से ही ,
अब से” अनु ” का दिल अपने खुदा के लिए धड़केगा ।