दास्तानें दर्द जिन्दगी
मिले गम हम को हँस के सह लेते हैं
दर्द जब हद से बढता है तो रो लेते हैं
जिन्दगी सुख दुख का घना सागर है
दिल हो जब रुखा गोता लगा लेते हैं
जुदाई से ही मिलती है तन्हाई तन्हाई
तन्हाई में आँखों से आँसू बहा लेते हैं
रंज के बादल बन बरसते हैं नयनों से
आँसू भी छोड़ें साथ दिल से रो लेते हैं
प्यार मिलता हैं सदा नसीब वाल़ो को
हम नसीबों के मारे हैं प्यार खो लेते हैं
चाँद होता है शालीन शांत खूबसूरत
मिलता नहीं किसी को निहार लेते हैं
पपीहा तरसता है सदा वर्षण बूंदों को
मेघ जब बरसें चातक दम तोड़ लेते हैं
मिले गम हम को हँस के सह लेते हैं
दर्द जब हद से बढता है तो रो लेते हैं
सुखविंद्र सिंह मनसीरत