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11 Jun 2023 · 1 min read

दास्ताँ दिल की

हाल-ए-दिल तुम्हें अपना सुनाऊं कैसे ?
जो है दिल में उसे तुम्हें बताऊं कैसे ?
हो कितने अजीज तुम हमें
ये बात लव्जों पर लाऊं कैसे ?

ना समझा सकती हूं, ना बता सकती हूं
ना दिल में इसे अब छुपा सकती हूं

किस्मत की तुम मेरी लकीर बन जाओ
हाथों में वो लकीर मैं लाऊं कैसे ?
सिमट जाओ तुम गज़ल में मेरी
वो गज़ल को मैं लिखूं कैसे ?

जाता है जो तुम्हारे दिल के दर तक
अजीज मुझे वो हर रास्ता लगता है
सजता जिससे चेहरे का नूर ये मेरा
वो अक्स मुझे अब तू लगता है

ना तुझे भुला सकती हूं
ना तुझसे किए वादों को भुला सकती हूं
ना तेरा इन्तज़ार मिटा सकती हूं

ए-खुदा ज़रा तू ही दस दे
अब होर किन्ना तू तड़पावेगा मैनूं

जान ले ये तू बात मेरी अब
लगता है ड़र मुझे तुम्हें खोने से
कही छिन ना ले जमाना तुमको मुझसे
हर उस मंजर से दिल सहर उठता है

ना जमाने की हकीकत दिखा सकती हूं
ना अपने गम को बता सकती हूं
ना जमाने सी खुदगर्ज़ बन सकती हूं

बस, हत्था की लकीरां विच
मैं अपने रब तो तेरा साथ मंगती हूं
ए मेरे रब! अरदास मेरी तू ये सुन लेना
दूर कभी ना तुम हमको करना।

– सुमन मीना (अदिति)

Language: Hindi
Tag: SilentEyes
6 Likes · 1 Comment · 291 Views
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