दास्ताँ ऐ दर्द
मिलना कभी तुम फुर्सत में हाल ऐ दिल बताएंगे,
जख्म अपने दिल के उस रोज तुम्हें हम दिखाएंगे।
सीने में अपने दर्द का ज्वालामुखी दबा कर बैठे हैं,
कराह उठोगे जब अपने दर्द का अहसास कराएंगे।
मोहब्बत में नहीं चोट खाई हमने यकीं करना तुम,
क्या क्या बीती है दिल पर बारीकी से समझाएंगे।
छला हर रिश्ते ने हमें और छलकर मजाक उड़ाया,
सुनकर कहानी दग़ाबाज़ी की आँखों से आंसू आएंगे।
इसीलिए कहती हूँ अब भरोसा नहीं रहा किसी पर,
शायद ही जिंदगी भर किसी पर भरोसा कर पाएंगे।
दुनिया पढ़ सके दर्द को मेरे और एक सबक ले सके,
इसीलिए ‘सुलक्षणा’ से दर्द का हर लम्हा लिखवाएंगे।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत