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28 May 2021 · 1 min read

दारु

दारु पीकर खो दिया, मान और सम्मान
निर्धन निर्बल हो रहे, गया नहीं अभिमान
गया नहीं अभिमान, व्यर्थ की गाली बकते
पीने का है शौक, नहीं पीने में थकते
कह पाठक कविराय, नशा मत होहु उतारू
तन मन धन बर्बाद, विनाशक है ये दारू

1 Like · 1 Comment · 413 Views
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