दारु
दारु पीकर खो दिया, मान और सम्मान
निर्धन निर्बल हो रहे, गया नहीं अभिमान
गया नहीं अभिमान, व्यर्थ की गाली बकते
पीने का है शौक, नहीं पीने में थकते
कह पाठक कविराय, नशा मत होहु उतारू
तन मन धन बर्बाद, विनाशक है ये दारू
दारु पीकर खो दिया, मान और सम्मान
निर्धन निर्बल हो रहे, गया नहीं अभिमान
गया नहीं अभिमान, व्यर्थ की गाली बकते
पीने का है शौक, नहीं पीने में थकते
कह पाठक कविराय, नशा मत होहु उतारू
तन मन धन बर्बाद, विनाशक है ये दारू