दायरे
अपने दायरे हमने खुद बनाये
कुछ हालात ने मजबूर किया ,
कुछ हम खुद से ठहर गये।
पैर हमारे बेड़ियों में जकड़ गये ।
इनसे अब आज़ाद होना चाहिये ।
ठहरा पानी नहीं बहती धार होना चाहये ।
अपने दायरे हमने खुद बनाये
कुछ हालात ने मजबूर किया ,
कुछ हम खुद से ठहर गये।
पैर हमारे बेड़ियों में जकड़ गये ।
इनसे अब आज़ाद होना चाहिये ।
ठहरा पानी नहीं बहती धार होना चाहये ।