दायरे से बाहर
निखरने लगा हूँ मैं उनसे नजरें मिला कर
करता हूँ बातें अब तो सबसे मुस्कुरा कर।
हो गया यकीन उस वक़्त खुदा पे मुझको
जब किया इकरार उसने आँखें झुका कर।
गुजर तो रही थी ज़िंदगी गुमनाम बेसबब
कर दिया मशहूर उसने अपना बना कर ।
चांद,तारे,फूल,तितलियाँ,सुबहओशाम भी
मिलतें हैं शबो-रोज़ मुझसे खिलखिला कर ।
सादगी है,सुकून है सहूलियत के साथ-साथ
ख्वाब भी खुश हैं आजकल नींद में आकर।
-अजय प्रसाद