दायरे से बाहर
हक़ औ हिसाब मांगा तो बुरा मान गए
काँटों से गुलाब मांगा तो बुरा मान गए ।
वर्षो तलक जिनको रक्खा गया गुमनाम
जब उसने खिताब मांगा तो बुरा मान गए।
ज़िंदगी भर जो सहते रहे ज़ुल्मोसितम
ज़रा सा आदाब मांगा तो बुरा मान गए।
दबे कुचले रहे जो अनगिनत सरकारों से
ज़र्रे ने आफताब मांगा तो बुरा मान गए।
तुम तो अजय बड़े ही दगाबाज़ निकले
गज़ल-ए-किताब मांगा तो बुरा मान गए।
-अजय प्रसाद