दायरे में शक के ……
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बहर-ए-ज़मज़मा मुतदारिक मुसद्दस मुज़ाफ़
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
222222222222
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दायरे में शक के मेरा आइना इन दिनों
कोने- कोने से टूटा है फकत चेहरा इन दिनों
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गिनती के थे, कुछ मेरे अच्छे उसूल मगर
पता नहीं कितने पैरों ने इसे, रौंदा इन दिनों
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अब जरा टहलने से सांस लगी, मेरी फूलने
मेरी हलचल पे जारी है, पहरा इन दिनों
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आस्था के जंगल, कोई हिरन ही नहीं बचा
मांद छोड़ के शेर पास ही, ठहरा इन दिनों
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दुखती रगो में जरा हाथ, अजाने क्या रख दिया
मायूसियों का रिश्ता, हो गया गहरा इन दिनों
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खामोशी के जंगल में बे-जुबाँ अकेला ‘सुशील’
हुआ क्यों मजबूर बदलने को रस्ता इन दिनों
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सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर
जोन 1 स्ट्रीट 3 दुर्ग छत्तीसगढ़
5.4.24.