दायरा
यह सच है
पिता ने प्रसव वेदना नहीं सही है
लेकिन क्या उसके अंदर अपनी संतान के लिए
अतुलनीय संवेदना नहीं रही है?
अपनी संतान को
समाज का/ देश का/ विश्व का
एक सम्मानजनक नागरिक
बनाने की जिम्मेदारी
एक पिता ही निभाता है;
मगर विरले ही इसका श्रेय
उसके सर जाता है;
अपनी आकांक्षाओं की लाश पर
खड़ा करता है
अपने बच्चों की महत्वाकांक्षाओं के महल,
उन्हें जीवन में न झेलनी पड़े कठिनाइयाँ
इसके लिए करता है
हर शुरुआत/ हर पहल;
परंतु बहुधा उसे संतान से यही सुनना पड़ता है,
“बेहतर हो आप मेरी दुनिया में हस्तक्षेप न करें
और हो सके तो अपने दायरे में ही रहें।”
©पल्लवी ‘शिखा’, दिल्ली।