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15 Dec 2021 · 1 min read

दामिनी

निर्भया की याद में,….एक कविता
अबला थी मगर सबला ,
वह बनना चाहती थी ।
अपने नन्हे से अरमानों को ,
पंख वह देना चाहती थी ।
खुद आत्म निर्भर बनकर ,
जो अपने माता – पिता का सहारा
बनना चाहतीं थी ।
मगर हाय ! किस मनहूस घड़ी में ,
हैवानों के पल्ले पड़ गई ।
एक ज़िंदा दिल ,खुश मिजाज इंसान
एक ज़िंदा लाश में बदल गईं ।
याद कर आज भी जिसे भीग जाती है आंखें ,
आज के दिन हमारी प्यारी दामिनी हमसे
बिछड़ गई ।

Language: Hindi
1 Like · 386 Views
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