दामिनी
निर्भया की याद में,….एक कविता
अबला थी मगर सबला ,
वह बनना चाहती थी ।
अपने नन्हे से अरमानों को ,
पंख वह देना चाहती थी ।
खुद आत्म निर्भर बनकर ,
जो अपने माता – पिता का सहारा
बनना चाहतीं थी ।
मगर हाय ! किस मनहूस घड़ी में ,
हैवानों के पल्ले पड़ गई ।
एक ज़िंदा दिल ,खुश मिजाज इंसान
एक ज़िंदा लाश में बदल गईं ।
याद कर आज भी जिसे भीग जाती है आंखें ,
आज के दिन हमारी प्यारी दामिनी हमसे
बिछड़ गई ।