दामाद
बारात आने में थोडी देर थी ।
सब बाहर तैयारी में लगे थे और संध्या पुरानी यादो मे खोई गयी थी :
” मेरी शादी की बात चल रही थी । घर में सभी बहुत उत्साहित थे । पापा ने शादी की तैयारी और दान दहेज़ के लिए आफिस से लोन ले लिया था । मुझे यह सब अच्छा नही लग रहा था क्योकि हम तीन बहने ही है । पापा मेरे ऊपर इतना खर्च कर देंगे तब बहनों का क्या होगा ।
मैं बहुत उदास हो गई।
इस बीच उमेश जो अहमदाबाद मे साफ्टवेयर इंजीनियर थे आऐ और मुझसे मिले । मेरी उदासी देख कर उन्हें लगा यह शादी मुझ पर जबरदस्ती थोपी जा रही है और मै इससे खुश नही हूँ।
जब उन्होंने बहुत जिद्द करके कारण पूछा तब मैने सब बता दिया ।
वह मेरी नादानी पर हंस दिये और बोले :
” मैं खुद इतने तामझाम और खर्च के पक्ष मे नही हूँ लेकिन दुनिया दिखाई के लिऐ कुछ थो करना है लेकिन तुम बिल्कुल चिन्ता मत करो । तुम्हारे पापा को अब एक बेटा भी मिल गया है । तुम्हारे सब सुख दुःख बक्त जरूरत तुम्हारा परिवार मूझे साथ पायेगा । बहनों की पढ़ाई शादी की जिम्मेदारी अब हमारी भी है । तुम भी जाब ज्वाईन करना ।”
उमेश कितने स्पष्ट और खुले विचार है यह जान कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई ।
तभी बारात आ गयी सुन कर मैं यथार्थ में वापस आ गयी और सोचने लगी :
“जब दामाद बेटे बन जाऐ तब बेटों की चाह में लोग अपने सामर्थ्य से ज्यादा बच्चो का परिवार नही
बढाऐगे ।”
लेखक
संतोष श्रीवास्तव
भोपाल