दामन क्यों महकता है??
बरसते हुस्न से पूछो दिवाना क्यों मचलता है।
छलकते जाम से पूछो समंदर क्यों बहकता है।
कभी मंदिक कभी मसजिद किया है शान से सजदा
पहन खूनी लिबासों को दरिंदा क्यों कुचलता है।
चले जब काफ़िला लेकर कफ़न बाँधे मुहोब्बत का
उजाड़ी प्यार की बस्ती कलेजा क्यों दहलता है।
ज़मीं ज़न्नत हमारी है यही काशी यही काबा
सिसकती मातृ से पूछो ये’दामन क्यों महकता है।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका–“साहित्य धरोहर”
वाराणसी। (मो. 9839664017)