दानी सुमन
‘दानी सुमन’
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फूल खिलके यहाँ मुस्कुराने लगे।
गीत मधुमास के गुनगुनाने लगे।।
प्रीत चूनर पहन चाँदनी तन सजी।
ओस मुक्तक गिरे झिलमिलाने लगे।।
अंक झूला झुला शाख हँसने लगी।
रूप लोभी भ्रमर पास आने लगे।।
गंध-सौरभ छिने रूप मुरझा गया।
तेज झोंखे पवन के गिराने लगे।।
रंग-यौवन ढला,धूल में मिल गया।
देख दुर्दिन सभी पल रुलाने लगे।।
ज़ख्म रिश्ते यहाँ दे रहे हैं सभी।
आज ‘दानी सुमन’ ये कहाने लगे।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
संपादिका-साहित्य धरोहर
वाराणसी।