दादी की तगड़ी (कहानी)
दादी की तगड़ी( कहानी )
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पुरानी बात है । एक शहर में रामधन नाम का व्यापारी रहता था । रामधन के पूर्वज काफी धनाढ्य थे लेकिन रामधन के पिताजी के समय से ही व्यापार घटता चला गया और परिवार से समृद्धि का नाता छूट गया ।
रामधन की छोटी सी दुकान थी । टूटी फूटी। उसी से जैसे-तैसे गुजारा चलता था। दुकान पर लगाने के लिए लागत भी उसके पास नहीं थी । लेकिन हां , रिश्तेदारों में तथा खानदान और आसपास के मोहल्लों में रामधन की भारी प्रतिष्ठा थी । कारण यह था कि रामधन के पास उसकी दादी की शादी के समय चढ़ाई गई ढाई सौ ग्राम सोने की तगड़ी रखी हुई थी । इतनी भारी सोने की तगड़ी पूरे शहर में किसी के पास नहीं थी। रामधन बहुत गर्व से अपनी दादी की विरासत में मिली हुई सोने की तगड़ी को सबको दिखाता था । लेकिन दो-चार मिनट की यह वाहवाही होती थी और उसके बाद फिर वही गरीबी और विवशता से भरा हुआ संसार रह जाता था ।
एक दिन मौहल्ले में एक साधु आए। रामधन के पास वह हर साल आते थे। रामधन में पहली बार उनसे अपनी दादी की सोने की तगड़ी का जिक्र किया । जिक्र सुनकर साधु कुछ सोचने लगे और फिर बोले” रामधन ! तुम दादी की तगड़ी को गला कर बेच दो और रुपए कर लो । फिर उस धन से दुकान और मकान की मरम्मत कराओ तथा बाकी पैसा कारोबार में लगा दो।”
रामधन ने जब यह सुना तो एक बार तो उसकी आँखों में चमक आ गई लेकिन तुरंत उसका चेहरा मुरझा गया और बोला” पुरखों की यह आखिरी निशानी कैसे गला दूँ? महाराज मुझ पर पाप नहीं लग जाएगा?”
साधु मुस्कुराए बोले “पाप तो इस तगड़ी को निरुपयोगी सामग्री के रूप में बनाकर तुम कर रहे हो । वह धन जो उपयोग में न आए निरर्थक है ।तुम्हारी दादी की तगड़ी तुम्हारे और बच्चों की जिंदगी को खुशहाल बनाने के लिए उपयोग में आनी चाहिए । यही इसका सर्वोत्तम उपयोग है।”
रामधन कहने लगा ” महाराज सच तो यह है कि कई बार मेरे मन में भी तगड़ी को गलाने का विचार आया था मगर समाज के डर से चुप होकर रह गया कि लोग क्या कहेंगे। मगर अब आपके प्रोत्साहन से सारा डर जाता रहा। अब मैं विरासत का सही उपयोग करूंगा ।”
उसके बाद रामधन ने तगड़ी बेचकर पैसा किया और घर , दुकान और कारोबार में चार चाँद लगा दिए ।
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लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश )
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